मुक्ति। मुक्तिः।Eternal Freedom
तत्त्ववित्तु महाबाहो गुणकर्मविभागयोः ।गुणा गुणेषु वर्तन्त इति मत्वा न सज्जते ।। ~ श्रीमद्भगवद्गीता, अध्याय 3, श्लोक 28 अर्थ: हे महाबाहो! जो तत्वज्ञानी होते हैं, जो जानते हैं, वो कहते हैं कि सत, रज, तम – इन्हीं गुणों से उत्पन्न इंद्रियाँ, इन्हीं गुणों से उत्पन्न रूप-रस आदि में बरत रही हैं, और ये जानकर वो फिर लिप्त भी नहीं होते और ‘मैं कर्ता हूँ’ ऐसा अभिमान भी नहीं करते। हम सरल चीज को भी जटिल बना देते है, अगर कोई भी ऐसी चीज हो , जिससे अहम को खतरा हो, जैसे आत्मज्ञान का विषय तो उसको इतना जटिल बना कर पेश करो जैसे कितनी जटिल बात है, जो बुद्धि की पकड़ में आ जाए वो अध्यात्म कैसे , ऐसी बातें ठीक हैं पर बिल्कुल अंतिम चरण है वो अध्यात्म का , जहां पर तर्क करते करते आप उस जगह पहुंच जाते है जहां आपकी बुद्धि एकदम अवाक रह जाए। पर आत्मज्ञान तक पहुंचने के लिए ज्ञान एवं तर्क ही हैं जो एकदम आवश्यक है, उसके बाद अहम को नष्ट करना पड़ता है, खुद को मिटाना होता है, असली खुद को पहचान पाने से लेकर खुद को जानने और मानने तक का सफर सिर्फ ज्ञान, तर्क, प्रेम जनित कर्म से ही आता है। जब की धर्म के ठेकेदारों क...